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Thursday, December 23, 2021


II जय माँ सरस्वती II

मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे ।

स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि: शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥

अर्थ : हे उदार बुद्धिवाली माँ ! मोहरूपी अन्धकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो और अपने सब अंगो की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अन्धकार का शीघ्र नाश करो ।

विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

अर्थ : विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।