II जय माँ सरस्वती II
मोहान्धकारभरिते
ह्रदये मदीये मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि:
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥
अर्थ
: हे उदार बुद्धिवाली माँ ! मोहरूपी अन्धकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो
और अपने सब अंगो की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अन्धकार का शीघ्र नाश करो ।
विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात्
धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
अर्थ
: विद्या विनय देती है, विनय
से पात्रता आती है,
पात्रता
से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।